गणेशगल्ली ( मुंबईचा राजा )
श्री
श्रीगणेश सुखकर्ता। दुःखहर्ता मंगलदाता ।
ऋद्धिसिद्धीचा भर्ता। त्या एकदंता, वंदितो।।
श्रीगणेश पार्वतीकुमार। त्यासी माझा नमस्कार।
शिवनंदन तो विघ्नहर। आधिव्याधी दूर ठेवीतसे।।
श्रीगणेशा शिवपार्वतीनंदना। भक्तिभावें करितो तुझिया स्मरणा।।
देवा, येऊनी ह्या स्थाना। करितों पूजना, स्वीकारावें।।
श्रीगेशा मंगलमूर्ते। ऋद्धीसिद्धीशा, गणाधिपते।
देवा, येऊनी आमच्या येथे। आम्हां सर्वातें, धन्य करी।।
श्रीगणेशचतुर्थीच्या दिवशीं। भारतवर्षी, महाराष्ट्र देशीं।
यथाशक्य सामुग्रीनिशी। गणेशपूजमासी आरंभिले।।
कुलदैवतासी केलें वंदन। ग्रामदेवताचें स्मरण।
वास्तूदैवतासी नमस्कारून। पूजा यथाज्ञान, करीतसे।।
मला नकळे वेदश्रुती। माझी भोळीभाबडी भक्ती।
एकच जाणतों वस्तुस्थिती। तूं गणपती, स्वामी माझा।।
तूं सकल विश्वासी आधार। महिमा तुझा अगाध अपार।
तुज नमिती सुरेश्वर। मज दीनावर, कृपा करी।।
ब्रह्मा विष्णु आणि महेश। सूर्य, चंद्र, तारका, आकाश।
वनस्पती, प्राणी, मानववंश। लीलाविलास, हा तुझा।।
जें जें जगी दिसे भासे। तें तें तपझेंच रुप असे।
ह्या सर्वाहून तुजला कैसें। वेगळेसे, करावें ? ।।
भिन्न भिन्न अवतारीं। भ्रष्टाचारी, नाशिलें।।
तुझ्या पराक्रमाचें स्मरण। कृतज्ञतेने करिता जन।
मृत्तिकेती मूर्ति करुन। घराघरातून, पूजिती।।
श्री
श्रीगणेश सुखकर्ता। दुःखहर्ता मंगलदाता ।
ऋद्धिसिद्धीचा भर्ता। त्या एकदंता, वंदितो।।
श्रीगणेश पार्वतीकुमार। त्यासी माझा नमस्कार।
शिवनंदन तो विघ्नहर। आधिव्याधी दूर ठेवीतसे।।
श्रीगणेशा शिवपार्वतीनंदना। भक्तिभावें करितो तुझिया स्मरणा।।
देवा, येऊनी ह्या स्थाना। करितों पूजना, स्वीकारावें।।
श्रीगेशा मंगलमूर्ते। ऋद्धीसिद्धीशा, गणाधिपते।
देवा, येऊनी आमच्या येथे। आम्हां सर्वातें, धन्य करी।।
श्रीगणेशचतुर्थीच्या दिवशीं। भारतवर्षी, महाराष्ट्र देशीं।
यथाशक्य सामुग्रीनिशी। गणेशपूजमासी आरंभिले।।
कुलदैवतासी केलें वंदन। ग्रामदेवताचें स्मरण।
वास्तूदैवतासी नमस्कारून। पूजा यथाज्ञान, करीतसे।।
मला नकळे वेदश्रुती। माझी भोळीभाबडी भक्ती।
एकच जाणतों वस्तुस्थिती। तूं गणपती, स्वामी माझा।।
तूं सकल विश्वासी आधार। महिमा तुझा अगाध अपार।
तुज नमिती सुरेश्वर। मज दीनावर, कृपा करी।।
ब्रह्मा विष्णु आणि महेश। सूर्य, चंद्र, तारका, आकाश।
वनस्पती, प्राणी, मानववंश। लीलाविलास, हा तुझा।।
जें जें जगी दिसे भासे। तें तें तपझेंच रुप असे।
ह्या सर्वाहून तुजला कैसें। वेगळेसे, करावें ? ।।
भिन्न भिन्न अवतारीं। भ्रष्टाचारी, नाशिलें।।
तुझ्या पराक्रमाचें स्मरण। कृतज्ञतेने करिता जन।
मृत्तिकेती मूर्ति करुन। घराघरातून, पूजिती।।
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